इसलिए चल रहा है मोदी का जादू--
By Sri Chetan Bhagat--Dainik Bhaskar
कम ही राजनेता उतने आकर्षित करते हैं, जितने नरेंद्र मोदी करते हैं और पिछले बारह वर्षों में कोई नेता इतना विवादास्पद भी नहीं रहा। न किसी नेता पर इतने आरोप लगाए गए और न इस तरह बहिष्कृत किया गया। इसके बावजूद न सिर्फ उनका वजूद बना रहा बल्कि राजनीति में उनकी खूब तरक्की हुई। 2014 के आम चुनाव में वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं। तीन साल पहले यह लगभग नामुमकिन ही था। आज हालत यह है कि यदि उन्हें जीत नहीं मिली तो लोगों को आश्चर्य होगा। उनसे दूर भागने वाले सहयोगी भी सकारात्मक संकेत भेज रहे हैं। अचरज यह है कि उनकी आलोचना अब भी नहीं थमी है। गोधरा दंगों को लेकर आलोचना तो बंद हो गई है पर विशेषज्ञों की एक नई जमात गुजरात के विकास की कहानी में खामियां ढूंढऩे लगी है।
उन्हें राज्य में सबसे खराब जगहों की तलाश होगी। ऐसे स्कूल का फोटो जहां पर्याप्त शिक्षक न हों। कोई ऐसा अस्पताल जहां सरकारी मदद नहीं पहुंच रही हो ताकि वे चीख-चीखकर बता सकें, 'देखो, गुजरात की हालत कितनी भयावह है।Ó वे यह भूल जाते हैं कि गुजरात उस भारत का ही एक हिस्सा है, जिसे मोटेतौर पर केंद्र सरकार चलाती है, क्योंकि ज्यादातर फंड और नीतियों पर उसका नियंत्रण है। गड़बडिय़ों वाले गुजरात (या प्रगतिशील गुजरात) के लिए पूरी तरह राज्य सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
जो भी हो, एक बात साफ है- मोदी का राजनीतिक ग्राफ लगातार ऊपर उठ रहा है। हमेशा न्यायसंगत बातें करने वाले पर हमेशा न्यायसंगत न होने वाले केजरीवाल भी मोदी प्रभाव को कम नहीं कर पाए हैं जबकि उन्होंने गडकरी, वाड्रा, अंबानी, शीला दीक्षित जैसे कई नेताओं की प्रतिष्ठा सफलतापूर्वक खराब की है।
क्या यह सिर्फ मोदी के विकासवादी एजेंडे का कमाल है? क्या विकल्प न होने से ऐसा है? क्या यह मोदी के व्यक्तित्व व उनकी वक्तृत्व कला का असर है? या यह हिंदुत्व को लेकर उनके उस रुख के कारण है, जिसका चाहे बढ़चढ़ाकर बखान न भी किया गया हो, लेकिन वह हमेशा से मौजूद तो रहा है? भाजपा के अन्य नेताओं ने भी राज्यों में अच्छा शासन चलाया है। मसलन, मनोहर पर्रिकर और शिवराज सिंह चौहान। फिर मोदी के पास ही जुनूनी प्रशंसकों का ऐसा आधार क्यों हैं, जो किसी अन्य भाजपा नेता के पास नहीं है?
इन प्रश्नों के उत्तर महत्वपूर्ण हैं। पहली बात तो यह कि भाजपा को मोदी लहर को कुछ और भुनाना चाहिए, मोदी ने अपने प्रशंसकों को जिस स्थिर सरकार का वादा किया है उसके लिए अभी लगाए अनुमान से 20 सीटें ज्यादा लाने की जरूरत है। दूसरी बात, मोदी की लोकप्रियता को समझना उनके विरोधियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। अभी तो विरोधी उन्हें मदद करते ही दिखाई पड़ते हैं। आलोचना उनकी चमक और बढ़ा देती है। और अंत में मोदी का आकलन करने से हमें यह अंतर्दृष्टि मिलती है कि भारतीय के रूप में हम हैं कौन?
भारतीय समाज में हिंदुत्व का गहरा बोध है, जिसकी अनदेखी की गई है। इसे कम करके आंका गया है। यह सही है कि हमारा संविधान और कानून धर्मनिरपेक्ष हैं। हमारी सार्वजनिक बहसों में साम्प्रदायिक दलीलों को जगह नहीं दी जाती, जो सही भी है। आबादी में अस्सी फीसदी हिंदू होने के कारण बहुमत के इस अहसास को पूरी तरह हटा पाना लगभग नामुमकिन है। इसके साथ मुस्लिमों को वोट बैंक में बदलने और मुस्लिमों के मुद्दों पर बेहतर रुख अपनाने की कांग्रेस की नीति को जोड़ लीजिए। हिंदुओं के असंतोष की भावना और भी प्रखर हो जाती है। इसीलिए जब मोदी के आकलन की बात आती है तो कई लोग गोधरा दंगों से निपटने के तरीके को ज्यादा महत्व नहीं देते। उनकी भूमिका भी स्पष्ट नहीं है (और कानूनी रूप से सिद्ध भी नहीं हो सका है।)
फिर लोगों के एक तबके के लिए यह प्रतिशोध जैसा है। बेशक, वे यह तथ्य भुला देते हैं कि जिन मुस्लिमों ने ट्रेन को आग लगाई या हमले की साजिश रची उनका उन मुस्लिमों से कोई संबंध नहीं था, जिन्हें दंगे की आग में झुलसना पड़ा। हालांकि, प्राय: भावनाएं, तर्क पर भारी पड़ती हैं और क्षुब्ध हिंदू वर्ग ने मोदी को न्यायालय से बरी होने के पहले ही माफी दे दी। मैं यहां सही-गलत का कोई फैसला नहीं दे रहा हूं। मैं बता रहा हूं कि ऐसा हुआ था। मोदी अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुत्व की अभिव्यक्ति बन गए। यह ऐसी चीज है कि हम चाहे जितने कानून पारित कर दें, लेकिन भारत में हम इसे टाल नहीं सकते।
मोदी के अच्छे प्रदर्शन की तीसरी वजह अपेक्षाओं को मैनेज करने की उनकी योग्यता है। वे गुजरात में तब तक काम करते रहे जब तक कि आंकड़े कुछ अच्छी बातें न बताने लगे। हो सकता है गुजरात एक आदर्श राज्य न हो ( कोई दूसरा राज्य भी नहीं) पर कम से कम कुछ मामलों में यह दूसरे राज्यों से बेहतर है। खास बात तो यह है कि मोदी ने कभी भी कुछ हासिल करने के पहले ऊंचे-ऊंचे दावे नहीं किए। उन्होंने कड़ी मेहनत की और बाद में इसकी मार्केटिंग की। वादा कम और काम ज्यादा का हमेशा ही अच्छा परिणाम मिलता है।
चौथी बात यह है कि उनका व्यक्तित्व डॉ. मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व के ठीक विपरीत है। डॉ. सिंह से कोई काम की बात बुलवाना उतना ही कठिन है, जितना मुंह से दांत निकालना। मोदी सीधी बात बोलने वाले व्यक्ति हैं। लोगों को यह पसंद है। उन्हें ऐसा प्रधानमंत्री चाहिए, जिसकी अपनी कोई राय हो फिर चाहे उसमें वैसी नफासत न भी हो। मोदी के हास्य बोध से भी नुकसान नहीं है, क्योंकि हास्य-विनोद लोगों से जोड़ता है और आकर्षण पैदा करता है। फिर चाहे उनके ज्यादातर लतीफे 'शहजादा' और 'मौनी प्रधानमंत्री' पर ही होते हैं।
पांचवीं बात, वे व्यावहारिकता से अपनी बात रखते हैं। लोग जानते हैं कि भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, वंशवाद, महिलाओं पर अत्याचार और ढेर सारी अन्य बुराइयां हटाना अच्छी बात है, लेकिन यह काम आसान नहीं है। चीजें बदलती हैं, लेकिन धीरे-इसमें समय लगता है। ज्यादातर भारतीय आदर्शवादी नहीं, ऐसा नेता चाहते हैं जो समाज में फैली गंदगी के बावजूद अच्छा काम कर दिखाए। मोदी ने यह भरोसा हासिल किया है।
अंतिम बात, सीधी-साफ बात करें तो मोदी भाग्यशाली हैं। राहुल गांधी मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में इतने कमजोर हैं कि टीवी के लोग को भी मनोरंजक चुनाव कवरेज के लिए मोदी के वास्तविक प्रतिद्वंद्वी को खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं (केजरीवाल जरूर कुछ मदद कर रहे हैं।)। घोटालों से भरे यूपीए के एक दशक के शासन ने ज्यादातर भारतीयों को क्षुब्ध कर दिया है। कांग्रेस नेताओं के अहंकार के कारण इसमें कोई मदद भी नहीं मिल पा रही है। मोदी ऐसे समय आए हैं जब लोग बदलाव चाहते हैं। यह ऐसा वक्त है जब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बहुत बूढ़ा हो गया है।
कुलमिलाकर कहें तो हम नहीं जानते कि चुनाव में क्या होगा। लग तो रहा है कि मोदी के सितारे बुलंद हैं। हो सकता है उनके और उनकी पार्टी के प्रयासों का यह नतीजा हो। भाग्य की बात भी हो सकती है या जैसा हिंदू धर्म में कहा जाता है, शायद नियति यही हो।
चेतन भगत, अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार
http://www.bhaskar.com/article/ABH-chetan-bhagat-column-4554835-NOR.html
http://www.bhaskar.com/article/ABH-chetan-bhagat-column-4554835-NOR.html
No comments:
Post a Comment