Saturday, September 22, 2012

Unity in Diversity

 In General It Is True-------------------------


Members of Team Anna and that of Team Ramdeo may be divided on ways and means to remove corruption, but their main target is same and that is to get rid of corrupt officers and corrupt politicians.

On the other hand, Members of various political parties may be divided on ways and means of becoming wealthy and powerful and may be clashing against each other to get their due share in money acquired through corrupt means, but their main target is to provide safety to each other and get rid of persons and groups which raise voice against their evil deeds. 


Common men may be divided on the basis of their caste, Community, region or religion but their target is same and that is to earn to survive and lead a peaceful and best possible comfortable life. 

Political parties may have different manifestos to contest election and to motivate their voter in their command area but their target is same and that is to get power by hook or by crook and get rid of those who put hurdles in their path.

Politicians may be divided in their approach to cheat voters , to make false promises to voters and to attract voters in their fold but they are united and unanimous in their evil deeds .

Officers in various departments may be in various posts ,places ,cadres with various nature of work and at various level of power, but they are united when corrupt deeds of any of their colleagues are exposed and when they need to protect their colleague from punishment.

Members of Parliament may belong to various political parties and have different ideology to pursue, but they all are united when the issue of their pay hike is debated or when any of their friend is trapped by CBI or ED or IT or Custom or IB on charge of corruption or tax evasion.

Bankers may be in different scale, posted at different places , their role to play may be different and their designation may be different but they are all united when there is talk of fixation of Staff Accountability on erring officials.They try to save each other even if it needs to sacrifice a sincere performer or it needs to punish a whistle blower on flimsy ground.

Contractors and supplier of goods and service in various government departments and Public sector undertakings may have different names of their companies , but they are all united to get maximum advantage from departmental heads and hence compromise their rates with mutual discussion and in common interest.

Persons sitting at different posts including the post of the President of India may be of different nature , but they in general tend to support their kith and kin, their friends , their relatives , their flatterers and their blind followers even if it needs to violate exiting rules and policies and they leave no stone unturned to provide safety to these fellows when their sins are exposed .This is why criminals and corrupt persons who have developed good relation with powerful dignitaries are never punished and always acquitted even by court of law.


घोटालों से निपटने की अद्भुत कला

Published in   
on  Wednesday September 19, 2012 
Written By Rajesh Kalra
पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव अद्भुत विरासत छोड़ गए हैं। भले ही लोग भारत में आर्थिक सुधार का श्रेय वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देते हैं, लेकिन इसके असली शिल्पकार नरसिम्हा राव थे। इकनॉमिक टाइम्स के टी. के. अरुण ने एक बार कहा था , ‘डॉ मनमोहन सिंह को सुधार का श्रेय देना वैसे ही है, जैसे आप बुकर सम्मान के लिए अरुंधती रॉय के वर्ड प्रोसेसर को क्रेडिट दें।‘ राव इससे भी प्रभावकारी एक और विरासत छोड़ गए। संकट से निपटने की उनकी कला पर वर्तमान नेता फल-फूल रहे हैं लेकिन कभी भी इसका श्रेय उन्हें नहीं दिया।

हमारे समय के लोग जानते हैं कि राव इस खेल में कितने निपुण थे। आम धारणा थी कि अगर कोई बड़ा विवाद हो और सरकार उसमें घिर गई हो, तो तय था कि एक दूसरा बड़ा मुद्दा पहले मुद्दे से लोगों का ध्यान हटा देता था। अगर ऐसा नहीं होता, तो उसे इतनी खूबसूरती से दूसरा मोड़ दे दिया जाता ताकि सबका ध्यान बंट जाता। बहुत सारे लोगों को याद होगा कि वह हर्षद मेहता विवाद में अटैची में एक करोड़ रुपये लेने के आरोपी थे। बहस का मुद्दा यह होना चाहिए था कि उन्हें पैसे मिले या नहीं, अगले दिन ज्यादातर चर्चाएं इस बात पर केंद्रित थीं कि अटैची कितनी बड़ी थी? क्या एक आदमी इसे खींच सकता था? और कितने के नोट थे? भ्रष्टाचार का असल मुद्दा और क्या हर्षद मेहता राव से मिले थे, इन पर शायद ही चर्चाएं हो पाईं।

चारों ओर से घिरी वर्तमान यूपीए सरकार तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से प्रकट रूप से संकट में फंसी दिख रही है। लगता है कि यह सरकार अच्छी तरह से राव के नक्शेकदम पर चल रही है। आप इस सरकार के घोटालों की लिस्ट देखिए और आपको समझ में आ जाएगा कि इस सरकार ने राव से किसी मोर्चे पर तो बेहतर किया है। एक घोटाले के बाद दूसरा घोटाला हो जाता है और लोगों का ध्यान पहले घोटाले पर से हट जाता है। हाइपर-ऐक्टिव मीडिया भी आगे बढ़ जाता है, क्योंकि पहले वाला ‘विशाल घोटाला’ ठंडे बस्ते में चला जाता है।

यह व्यवस्था घोटाले के सूत्रधारों के लिए अच्छी तरह से काम करती है। नित नए घोटाले सामने आने से उन्हें सुस्ताने का वक्त मिल जाता है। घोटाले में फंसा व्यक्ति जानता है कि कोई नया घोटाला आते ही सबका ध्यान कुछ समय के लिए दूसरों पर चला जाता है और वह इस तरह सीना चौड़ा करके घूमता है जैसे कुछ हुआ ही न हो।

इसे समझने के लिए यहां कुछ घोटालों का जिक्र कर रहा हूं। कैश फॉर वोट और हसन अली हवाला घोटाला 2008 में, मधु कोड़ा माइनिंग घोटाला और सुकना जमीन घोटाला 2009 में, कॉमनवेल्थ गेम्स और आदर्श हाउसिंग घोटाला 2010 में। इसरो-देवास डील, टाट्रा ट्रक घोटाला, कुख्यात 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला, दिल्ली एयरपोर्ट जमीन घोटाला, सुनियोजित तरीके सेएयर इंडिया/ इंडियन एयरलाइंस की ‘हत्या’ और पूर्व आर्मी चीफ वीके सिंह के उम्र को लेकर विवाद और सीवीसी की नियुक्ति में गड़बड़ी को लेकर विवाद। यह लिस्ट बढ़ती ही जाएगी।

जो मैं कह रहा हूं, वह एक सरसरी निगाह डालने पर भी समझा जा सकता है। अलग-अलग घोटाले अलग-अलग समय पर हुए और अलग-अलग लोग इनमें ऐसे जुड़े पाए गए जैसे किसी नाटक के पात्र हों। काफी हद तक यही लगता है कि पिछले घोटाले से ध्यान हटाने, पीछा छुड़ाने के लिए अ��ला घोटाला सामने आया। हो सकता है कि मैं ओवर-रिऐक्ट कर रहा होऊं या फिर निराशावादी हो रहा होऊं, लेकिन यह सब इतना अफसोसजनक है कि हाल ही में तृणमूल कांग्रेस का सरकार से हाथ खींच लेने की धमकी देना भी कुछ फर्क पैदा करता नहीं दिखता।

ये नेता लोगों को काफी ज्यादा बेवकूफ बनाते रहे हैं। जैसा कि मैं अक्सर कहता रहा हूं, ऐसा लगता है कि हमारे नेता पुरातन काल में रह रहे हैं। वे यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि दुनिया काफी आगे बढ़ चुकी है और भोले-भाले भारतीयों को बेवकूफ बनाने की जो चालें सालोंसाल से चलते आ रहे हैं, वे अब पूरी तरह से नाकामयाब हैं। हां, यह हो सकता है कि मीडिया पुराने मामले को छोड़कर नए मामले को टीआरपी के चक्कर में भुनाने लगता हो, लेकिन विशालकाय सोशल मीडिया, जिसका आधार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है और जो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बना बना रहा है, का असर कोई आई-गई बात नहीं है। इस सोशल मीडिया को इग्नोर नहीं किया जा सकता।

लगभग हरेक घोटाला डॉक्युमेंटेड है और जो कोई भी इसे पढ़ना/देखना चाहे, यह सभी के लिए उपलब्ध है। बस इतना ही नहीं, जैसे ही यह लगता है कि कोई घोटाला अपनी मौत मर रहा है, अचानक कोई न कोई उसके बारे में कुछ न कुछ जरूर छेड़ देता है और वह फिर से चर्चा के दायरे में आ जाता है। शुक्र है। और सिर्फ इसीलिए मीडिया की नजरों में आने से बच गए इनमें से कई घोटाले जागरूक सिटिजन जर्नलिस्ट्स की नजरों से नहीं बच पाते। वे सभी अपराधियों को याद दिलाते रहते हैं कि लोग अब पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हैं, और न सिर्फ यह कि वे उनकी करनियां भूलेंगे नहीं,  बल्कि वे उनके कुकर्मों को उनके पास मौजूद प्लैटफॉर्म पर खूब दिखाएंगे-बताएंगे भी।

तो, जो लोग यह सोचते हैं कि वे मेरे देश को और निचोड़ते रहेंगे और बड़े आराम से निकल लेंगे, दोबारा सोचें!!


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